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रविवार, 31 मार्च 2013

Kinnaur - The Land of God

दिनांक 20-05-2012

मुझे, मेरे पार्टनर गिरीश सचदेवा, भाई सुधाकर मिश्रा, और सिस्टर रूचि मिश्रा को एक ऑडिट कार्य से ११ दिनों के लिए हिमांचल प्रदेश के दौरे पर जाना निश्चित हुआ । दिनांक 20 मई का 12231 LKO CDG EXPRESS थर्ड एशी का टिकेट बुक करा लिया गया । 

पूरा प्रोग्राम कुछ इस प्रकार था :

१- चंडीगढ़ से किन्नौर
२- किन्नौर से कुल्लू
३- कुल्लू से पालमपुर
४- पालमपुर से डलहौजी
५- डलहौजी से पठानकोट से वापसी लखनऊ तक ।

२० मई हम चारो लोग ट्रेन पर सवार हो लिए, रात का खाना पैक था, खा पीकर आराम से सो गए । सुबह सवेरे ट्रेन सही समय से चंडीगढ़ पहुच गयी ।

अब जो सबसे कठिन कार्य करना था वो था टैक्सी बुक करना । चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन के बाहर टैक्सी वालों की  खूब भीड़ रहती है  और ये यात्रियों को बहुत परेशान भी करते है । अरे भाई आप अपना ऑफिस खोल लीजिये जिसे टैक्सी चाहिए वो खुद आयेगा ।  और यही वजह है की जैसे ही आप यह घोषणा करते है की आपको एक टैक्सी चाहिए तो ढेर सारे टैक्सी वाले आपको घेर लेते है ।

हम लोगो को किन्नौर में ग्राम सुंगरा , भाभानगर तक जाना था । जिसके लिए हमे चंडीगढ़ से वाया शिमला, रामपुर होते हुए कुल ३५० किलोमीटर की यात्रा करके शाम तक भाभानगर पहुँच जाना था । हमारी ट्रेन सुबह १० बजे चंडीगढ़ पहुंची थी । नाश्ता हमने ट्रेन में ही कर लिया था । अब किसी भी टैक्सी वाले को जब हम भाभानगर के बारे बताते तो वे चलने से इंकार कर देते थे । क्योकि वे तो शिमला , मनाली या अन्य टूरिस्ट प्लेस पर जाने का सोचकर हमारे पास आते पर हमारी यात्रा सुनकर वो वहां से भाग जाते थे ।

खैर हमने लखनऊ से चलते समय एक टैक्सी वाले का नंबर इन्टरनेट से ले लिया था सो हमने उसी से बात की और उसको बात समझ में भी आ गयी । बस एक ही समस्या थी की हमे उस टैक्सी वाले को वापसी का किराया भी देना पड़ा क्योकि जहाँ मैं जा रहा था वो कोई टूरिस्ट प्लेस नहीं है और टैक्सी वाले को वापसी की सवारी भी ना मिलती ।

अब हम करीब १२  बजे के आसपास चंडीगढ़ से रवाना हुए । १ बजे के बाद से सभी के पेट में चूहे कूद रहे थे । हमने निश्चित किया कि सोलन पहुंचकर ही कुछ खाया जायेगा । सोलन में हम सभी ने पराँठे  और आचार का सेवन किया । उसके बाद सभी की जान में जान आई ।

४ बजे से थोडा पहले हम सभी शिमला पहुँच चुके थे । शिमला मैं इसके पहले भी आ चुका  हू उस यात्रा का वर्णन आगे की पोस्ट में करूँगा । यहाँ से हम बस जल्दी से निकल गए क्योकि हमे भाभानगर पहुँचने की जल्दी थी ।

राश्ते में एक छोटी सी जगह थी शिलारू । यहाँ का उच्च शिखर प्रशिक्षण केंद्र, भारतीय खेल प्राधिकरण शिलारू बड़ा ही खूबसूरत लगा सो उसके २ - ३ फोटो लेकर यहाँ से भी निकल लिए ।

इसके बाद एक जगह आई मुर्थल कुमारसैन यहाँ पर हमने एक एक कटोरा मैगी और चाय ग्रहण की । इसके बाद यहाँ से जल्दी से भागे क्योकि अभी हमारी यात्रा आधी भी नहीं  हुई थी और हमे बहुत देर तक चलना था ।

काफी देर चलने के बाद करीब ७:३० बजे हम एक बेहद खूबसूरत छोटे से झरने के सामने खड़े थे । यहाँ से हम चाहकर भी बिना रुके आगे नहीं बढ़ सके । हाँ एक बात और चंडीगढ़ से चलते समय हम लोगो ने भयंकर गर्मी के मद्देनजर हल्के कपडे पहने थे । यहाँ पहुँचने पर भी टैक्सी के अन्दर हमे वास्तविक वातावरण का अंदाजा नहीं था । परन्तु जब हम बहार निकले तो बिलकुल शानदार ठंड का सामना करना पड़ा । मई के महीने में इतनी ठण्ड मैंने पहले कभी नहीं महसूस की थी । हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते थे कि भाभानगर में हम पर क्या बीतने वाली है । हालाँकि हम गर्म कपडे लेकर आये थे पर वो पर्याप्त होगे या नहीं ये तो वहां पहुचकर ही पता चलेगा । हाँ एक बात और हमारे पार्टनर गिरीश सचदेवा, उन्हें इतनी ठण्ड नहीं लगती जितनी शायद हम तीनों को लग रही थी क्योकि सबसे बड़ी बात ये थी की हम तीनों लोग रासायनिक पदार्थों का सेवन नहीं करते हैं ।

खैर ठण्ड एक तरफ थी और उस झरने का मजा एक तरफ । उसकी ख़ूबसूरती ने ठण्ड के अहसास को समाप्त ही कर दिया था । कोई आधे घंटे का समय हमने इस झरने के पास बिताया । फिर हम आगे बढ़ गए ।

कोई २ घंटे एक और सफर के बाद रात ९:३०  बजे हम भाभानगर पहुँच गए । वहां हमे जिस संस्था का ऑडिट करना था उसके ओनर हमारा इंतज़ार करते मिले । वहां पहुंचकर हमे पता चला की यहाँ एक भी होटल नहीं है । केवल PWD का गेस्ट हाउस है जहाँ पर हमारे रहने की व्यवस्था हमारे ऑडिटर होने की वजह से कर दी गयी थी । वो भी बेहद सस्ते दाम पर । हमने टैक्सी वाले को पेमेंट किया और वो उसी समय वहां से चंडीगढ़ के लिए वापस हो गया । यह देखकर हम तो परेशान हो गए की हमे तो बैठे बैठे बिलकुल जाम हो गए थे और एक ये है जो अभी वापस 350 किलोमीटर चंडीगढ़ जायेगा और सुबह तक पहुँच भी जायेगा । खैर उसकी आदत होगी हमारे तो बस का नहीं था । हम तो बस थोडा खाने का इन्तजार कर रहे थे जो की गेस्ट हाउस का रसोइया बना रहा था । हमारे अलावा  उस गेस्ट हाउस में ४ लोग और ठहरे हुए थे । सभी ऑफिसियल कार्य से थे।

यह जगह बिलकुल २ ऊँचे पहाड़ों के बीच में है और रिकांगपियो जाने वाले रास्ते में पड़ता है । यह ना तो कोई टूरिस्ट प्लेस है और ना ही यहाँ बिल्कुल भी भीड़ भाड़ थी । बिलकुल शांत सी जगह थी एक छोटा सा शुद्ध हिमांचली गाँव था सुंगरा । जिस गेस्ट हाउस में हम ठहरे थे उससे कोई 500 मीटर नीचे सतलुज नदी बह रही थी । सतलुज के बहते हुए पानी की आवाज हमे साफ़ सुनाई पड़ रही थी । बाहर वातावरण बिलकुल शांत और बेहद ठंडा था । जिस व्यक्ति के यहाँ सुबह हमे ऑडिट करना था वो हमे गेस्ट हाउस में इन करके और वहां के कर्मचारियों को दिशानिर्देश देकर 10 बजे के आसपास गुड नाईट बोलकर अपने घर चले गए । उनकी आतिथ्य की यह भावना मेरे दिल को छू गयी । अन्यथा हमारा कार्य तो सुबह से सुरु होने वाला था वो हमे फ़ोन पर भी बता सकते थे की गेस्ट हाउस में जाकर रुकना है ।

खैर हम रात में करीब 11 बजे के आसपास दाल सब्जी और रोटी खाकर और रजाई हाँ हाँ रजाई ओढ़कर सो गए । मुझे भी विश्वास नहीं हुआ था की मई के महीने में हम रजाई के अन्दर है ।

अच्छा अब आगे की बाते अगले पोस्ट में होगी तब तक आप रास्ते के फोटो देखिये ।

उच्च शिखर प्रशिक्षण केंद्र, भारतीय खेल प्राधिकरण शिलारू 



फुटबाल मैदान उच्च शिखर प्रशिक्षण केंद्र, भारतीय खेल प्राधिकरण शिलारू 


मेरा प्यारा छोटा भाई सुधाकर 



रास्ते एक खूबसूरत द्रश्य 


यहीं पर हमने मैगी और चाय पी थी 



ऊपर वाले होटल के सामने पेड़ो के बीच छोटा सा घर 

यही वो छोटा झरना है

मै और मेरी सिस्टर 

मेरा पार्टनर गिरीश और सुधाकर 
मेरे ठीक सामने झरना है 

बहुत ही खूबसूरत झरना था यह 

हमारा टैक्सी ड्राईवर बड़ा ही मस्त पंजाबी था 

अगले भाग में जारी ...........
   

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